एक नई शुरुआत

साथ हे साथ, घर की आर्थिक स्तिथी थोड़ी बिगड़ने के कारण मैंने लगातार पढ़ाई के साथ पढ़ने का भी काम किया। मैंने इस बीच बहुत कुछ सीखा। बहर्हाल, एम॰फ़िल पूरी होने के साथ मैं २०१८ में अमेरिका की यात्रा पर आइ और मुझे यहाँ कुछ और समय बिताने का मन हुआ। मैंने फ़ुल्ब्रायट फ़ेलोशिप के लिए २०१८ में अप्लाई किया और मुझे २०१९ में अमेरिका आने का मौक़ा मिला।

इस वक़्त मैं येल विश्वविद्यालय में एक हिंदी भाषा के अध्यापक की भूमिका निभा रही हूँ। आपका यह पूछना वज़िब होगा कि मैं, एक अंग्रेज़ी की अध्यापक, हिंदी क्यों पढ़ा रही हूँ- तो आपको मैं यह जवाब दूँगी- किसी भी देश में- अलग भाषा बोली जाती है- तो अमेरिका में आमतोर पर अंग्रेज़ी बोलते हैं- हिंदी एक दूसरी भाषा - या सेकंड लैंग्विज है। भाषा सिर्फ़ एक बात-चीत का माध्यम नहीं होती, यह आपकी सांस्कृतिक पहचान भी होती है- इसलिए में भारत के एक हिस्से की "कल्चरल रेप्रेज़ेंटटिव" या सांस्कृतिक प्रतिनिधि हूँ।मैंने बचपन से हिंदी हे बोली है, और एक हिंदी भाषी प्रदेश में पाली बड़ी हूँ- मुझे हिंदी से उतना हे लगाव है, जितना मुझे अंग्रेज़ी से है।

मैं यहाँ के तौर तरीक़ों से वाक़िफ़ हो रही हूँ और अपने तौर-तरीक़े अपने विध्यर्थियों को सिखा रही हूँ, जिससे वे भी कभी भारत आएँ और अपनापन महसूस करें, जैसे मैं यहाँ करती हूँ। 

आशा है, मेरा और आपका सफ़र अच्छा बीतेगा, और आपको मेरी इस यात्रा से बहुत कुछ सीखने और देखने को मिलेगा।

मैं आपसे बात-चीत करने का इंतेज़ार कर रही हूँ!

 

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